Raksha Bandhan Celebrated with Pomp at Parmarth Niketan

August 30, 2023

परमार्थ निकेतन में आज सायंकाल धूमधाम से रक्षाबंधन पर्व मनाया। वेदमंत्रों व शंख ध्वनि के साथ बहनों ने परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमारों को राखी बांधकर दोनों ने एक-दूसरे की रक्षा का संकल्प लिया।

परमार्थ विद्या मन्दिर, परमार्थ नारी शक्ति केन्द्र और शक्ति विकास केन्द्र की बालिकाओं और शिक्षिकाओं ने थाना कोतवाली, ऋषिकेश जाकर रक्षाबंधन किया। पूरे शहर की सुरक्षा करने वाले हमारे पुलिस कर्मी भाई-बहनों को रखी बांधकर उनका अभिनन्दन किया।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने विदेश की धरती से सभी को रक्षाबंधन की शुभकामनायें देेते हुये कहा कि भारत पर्वो का देश हैं, भारत कि संस्कृति, सद्भाव, समन्वय और समरसता की है। भारत की परम्परायें प्रकृति व संस्कृति के संरक्षण की है; प्रेम व पवित्रता की हैं, समर्पण और शुचिता की है, इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है रक्षाबंधन। सभी रक्षाबंधन को प्रेम, उल्लास और उमंग के साथ मनायें क्योंकि भारत की माटी के कण कण में उल्लास व उमंग, ओज व तेज समाहित है। हमारे शास्त्र हमें प्रकृति की उपासना का भी संदेश देते हैं, अब समय आ गया कि हम प्राणवायु देने वाले पेड़ों की रक्षा हेतु राखी बांधें तथा प्रकृति और पर्यावरण के संवर्द्धन का संकल्प लें। आईये हम मिलकर रक्षाबंधन तो मनायें परन्तु वृक्षाबंधन के साथ।

स्वामी जी ने कहा कि भारत अपने इतिहास, विरासत और संस्कृति की वजह से पूरे विश्व में एक विशेष स्थान रखता है। हमारा यह देश आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक, सैन्य शक्ति आदि में विश्व के बेहतरीन देशों में शामिल है। वर्तमान समय में हम अमृत काल में प्रवेश कर रहे हैं ऐसे में हम अपने मानव संसाधन को लगातार बेहतर, मजबूत व सशक्त कर रहे हैं। हमें ज्ञात है कि भारत में आधी आबादी नारियों की है इसलिये बिना उन्हें साथ लिए कोई भी समाज अपनी संपूर्णता तक नहीं पहुंच सकता है इसलिये उन्हें आगे लाने के लिये हमें विशेष प्रयास करना होगा और इसके लिये हमारी सोच व विचारधारा को बदलना होगा।

स्वामी जी ने कहा कि भारत संस्कृति प्रधान देश है और नारी हर संस्कृति के केंद्र में है परन्तु वास्तविकता में देखे तो वह केंद्र से बहुत दूर भी है क्योंकि समाज अब तक अपनी आवश्यकता के अनुसार नारियों को ढालता आया है। उनके सोचने, विचार करने, व्यवहार, खाने व पहनने से लेकर उनके जीवन जीने के ढंग को भी पुरुष नियंत्रित करता आया है और आज भी कई स्थानों पर यही हो रहा है। जब पूजा करनी हो तब हमें नारी देवी के रूप में और जब भोग करना हो तो दासी के रूप में चाहिये परन्तु अब हमें इस दोहरी मानसिकता को बदलना होगा। सृष्टि के निर्माण में नारी की भमिका व सहयोग उतना ही है जितना कि पुरुष का इसलिये दोनों को समान रूप से स्वीकारना व सशक्त करना होगा।

स्वामी जी ने कहा कि वर्तमान में नारियों की समस्याओं को दूर कर उनके लिए एक उपयुक्त वातावरण तैयार कर उन्हें सशक्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाने होंगे क्योंकि इस सभ्य समाज में नारियों का भी उतना ही हक है जितना की पुरूषों का है। आईये आज रक्षाबंधन के दिन संकल्प लें कि लैंगिक समानता की शुरूआत हम अपने घर व परिवार से करेंगे।